आजकल यह एक ट्रेंड सा चल पड़ा है कि जैसे ही राष्ट्रीय स्तर पर किसी संवैधानिक प्रावधान या किसी दस्तावेज में किसी नए शब्द का उल्लेख होता है, तो हम उसी के इर्द- गिर्द ही देखना शुरू कर देते हैं| हम यह भूल जाते हैं कि यह जो नया शब्द आया है, वह हमारे किसी न किसी पिछली अवधारणा से जुड़ा होगा, जिसके आधार पर हम उस नए शब्द या प्लान को अधिक बेहतर ढंग से क्रियान्वित कर सकते हैं|
जी हाँ, आप बिल्कुल सही समझ रहे हैं| मैं बात कर रहा हूँ भारत की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में उल्लिखित FLN मिशन की| इसमें क्या है? इसमें मुख्य रूप से बुनियादी भाषा साक्षरता और बुनियादी गणितीय संक्रियाओं पर बच्चे को दक्ष करने की बात कही गई है| पर हम इसमें यह नहीं सोच पाते कि बुनियादी भाषा साक्षरता और बुनियादी गणितीय संक्रियाओं की अवधारणा को बच्चों में मजबूत करने के लिए हमें किसी न किसी रूप में भाषा की ही आवश्यकता होगी| पर वह भाषा कौन सी होगी, यह जानना बहुत आवश्यक हो जाता है | हम FLN के इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सीधे पाठ्यपुस्तक की भाषा (शिक्षण के माध्यम की भाषा) को इससे जोड़कर देखना शुरु कर देते हैं |
मेरे हिसाब से यह ठीक नहीं है,क्योंकि इसी भारत की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में यह भी उल्लिखित है कि बच्चा अपनी मातृभाषा में ही सबसे बेहतर ढंग से सीखता है| बिना बच्चे की समझ की भाषा के हम किसी भी बच्चे में बुनियादी भाषा साक्षरता और गणितीय संक्रियाओं का ज्ञान नहीं करा सकते| आपको तो यह भी पता ही है कि हर कक्षा बहुभाषी है और हर कक्षा ही क्यों हर आदमी जब बहुभाषी है तो फिर पाठ्यपुस्तक की भाषा हमारे इस लक्ष्य को प्राप्त करने में कैसे उपयोगी होगी?
यह एक बड़ी चिंता की बात है कि हम FLN और बहुभाषी शिक्षण को अलग-अलग ढंग से तथा अलग-अलग रूप में देख रहे हैं जब हम इन्हें अलग- अलग सोचकर इसके आधार पर कोई योजना बनाते हैं तो नीचे स्तर पर यह बात बहुत मजबूती से चली जाती है कि ये दोनों बहुत अलग-अलग हैं| जबकि हमको इसे इस रुप में देखना होगा कि यह FLN एक लक्ष्य है जिसे बहुभाषी शिक्षण के अप्रोच या माध्यम से ही प्राप्त किया जा सकता है| जब तक हम इन्हें समग्र रूप में नहीं समझेंगे ,तब तक FLN के लक्ष्य को प्राप्त करना केवल एक सपना ही होगा|
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