सिद्धान्तों से कक्षाओं तक – प्रारंभिक भाषा शिक्षण कोर्स

By October 9, 2019blogs

शैक्षिक जीवन की शुरुआत

आभा रानी जी ने अपने व्यावसायिक जीवन की शुरुआत एक टीचर एजुकेटर के तौर पर की। टीचर एजुकेटर बनने का फैसला हैरानी का था क्योंकि अधिकांशतः लोग स्कूल निरीक्षण का काम चुनते हैं। उन्हें शुरू से पढ़ने-पढ़ाने में दिलचस्पी थी। साथ ही, उनकी माँ भी इसी क्षेत्र से जुड़ी रहीं तो माँ के नक्शे-कदम पर चलते हुए उन्होंने इस नियुक्ति को बड़ी उत्सुकता से स्वीकारा।
आभा जी ने अपने काम की शुरुआत 1991 में मुज्जफरपुर जिले की डाइट से की। उस दौरान राज्य शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् से जुड़े कामों के चलते उन्हें अपने सीनियर और अनुभवी लोगों के साथ भी काम करने का अवसर और अनुभव मिला। कम उम्र में यह अनुभव सीखने और उत्सुकता बनाए रखने में मददगार रहा।
साल 2012 में वे पटना डाइट- बिक्रम में प्रिंसिपल के तौर पर नियुक्त हुईं। उस समय डाइट में 10 से भी कम उपस्थिति रहती थी। आभा जी ने व्यवस्थागत चुनौतियों, जैसे – बिल्डिंग की मरम्मत, सामग्री की उपलब्धता (पुस्तकों का इंतजाम) और प्रशिक्षुओं की उपस्थिति – हर पहलू पर काम किया और सफलता हासिल की।
अब राज्य शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् में व्याख्याता के तौर पर वे अधिगम सूचकांक बनाना, पाठयक्रम के बदलाव, पाठय-पुस्तक का विकास आदि कामों में जुड़ी हुई हैं।

कोर्स से पहले

आभा जी भाषा की विध्यार्थी नहीं रहीं, मगर उन्हें भाषा शिक्षण में दिलचस्पी शुरू से रही। सन् 2013 में पूरे देश से 55 टीचर एजुकटर्स का चयन एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी के एक प्रोग्राम में हुआ था। आभा जी ने अपने प्रोजेक्ट के रूप में भाषा शिक्षण के विषय पर काम किया। वे अपने राज्य में बच्चों के न पढ़ पाने की स्थिति को बदलते देखना चाहती थीं।

कोर्स के दौरान

आभा जी का मानना है कि उन्हें इस कोर्स से बहुत कुछ सीखने को मिला। इस कोर्स ने इनके कई सालों के अनुभव को एक व्यवस्थित ढाँचे में ढाल दिया। कई अवधारणाएँ, विधियों से वाक़िफ़ होने के बाद भी उनके उद्देश्य और अहमियत को अब ज़्यादा गहराई से समझती हैं।
कोर्स की कुछ खास बातें जो उन्हें प्रभावशाली लगीं, उनमें क्रमबद्धता, सरल भाषा और अनगिनत उदाहरण, जो सिद्धांतों को कक्षा में लागू करने में मदद करते हैं- प्रमुख हैं। इस कोर्स की डिजाइन सीखने वाले को ध्यान में रख कर बनाई गई है- यह बात उन्हें प्रभावित करती है और यह कोर्स ‘ब्लेंडेड लर्निंग’ का एक बढ़िया नमूना है।
कोर्स के दौरान थिमैटिक कॉल में विशेषज्ञों या शोधकर्ताओं – रुक्मिणी बैनर्जी, शैलजा मेनन आदि से अपने प्रश्न पूछ पाना, उन्हें भाषा शिक्षण की दुनिया के लोगों से जुड़ने का एक अच्छा मौका लगा।
चूँकि आभा जी शिक्षिका नहीं हैं, उन्हें विद्यालय से सीधे न जुड़े होने के कारण कोर्स की सभी रणनीतियों को लागू करने का मौका नहीं मिलता। मगर कोर्स में मिले असाइनमेंट करने के दौरान उन्होंने कक्षाओं में सीखने-सिखाने की कई समस्याओं को हल करने के लिए रणनीतियों का प्रयोग किया।

कोर्स के बाद 

आभा जी को कोर्स में मिले असाइनमेंट और प्रोजेक्ट के दौरान भाषा शिक्षण के कई पहलुओं पर काम करने का मौका मिला। दो समस्याएँ जिनमें वे अपने काम के जरिए कुछ बदलाव लाना चाहती हैं, वो मौखिक भाषा विकास पर सतत् कार्य और पठन की विभिन्न रणनीतियों का प्रयोग है। व्याख्याता होने के नाते वे अध्यापकों के लिए प्रशिक्षण योजना, कार्यशाला आदि में इन दो पहलुओं पर जोर देती हैं। वर्ष 2018 से एल.एल.एफ. द्वारा संचालित तीन माह के कोर्स में स्थानीय मेंटर की भूमिका में अपना योगदान दे रही हैं। इनके कार्य को प्रतिभागीयों द्वारा काफी सराहा जा रहा है।

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  • oprolevorter says:

    I haven¦t checked in here for some time as I thought it was getting boring, but the last few posts are good quality so I guess I¦ll add you back to my everyday bloglist. You deserve it my friend 🙂

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